राजनेता: देश को
आगे बढ़ाएंगे, ग़रीबी
और बीमारी हटाएंगे,
खूब
फलेगा देश में
व्यापार, बस बना
दो हमारी सरकार|
देश
हमारा अच्छा है,
बस अक्ल से
थोड़ा कच्चा है,
हम करेंगे
इस देश को
तैयार, बस बना
दो हमारी सरकार|
आदमी: देश तो आगे बढ़ रहा है, पर बर्बादी की राह पे,
फैल रही
है भ्रष्टाचार की
बीमारी हमसे इस
संसार में|
खराब हो
रहा हैं इस
देश का नाम,
क्या करेंगे बना
कर सरकार|
राजनेता: हम नयी रोज़गार योजना बनाएंगे,
जो
कहे हमे पिछड़ा,
उसे हम अपनी
मिसाइले दिखाएंगे|
बिछा देंगे
हम पानी बिजली
का जाल,
बस बन
जाने दो हमारी
सरकार|
आदमी: रोज़गार योजना बहुत बनाते हो,
पर
उसमे अपने रिश्तेदारो
को ही दाखिला
दिलाते हो|
अंधेरे में जी
रहा हैं देश
के किसान,
कब से प्यासा हैं देश का जवान,
कब से प्यासा हैं देश का जवान,
क्या
करोगे बना के
सरकार|
राजनेता: देश में फैली शांति होगी,
उन्नति की नयी
क्रांति होगी,
बढ़ा देंगे
हम सुरक्षा का
जाल,
ऐसी
होगी हमारी सरकार|
आदमी: शांति का पाठ तुम पढ़ाते,
राम
रहीम को तुम
लड़वाते,
देश
की सुरक्षा का
है बुरा हाल,
क्या
कर लेगी तुम्हारी
सरकार|
राजनेता: हमारी सरकार
अलग होगी, हम
देश को आगे
ले जाएंगे,
सारे देशवासियों
को सफलता की
नयी राह दिखाएंगे,
उँचाई की चोटी
पर होगा ये
देश महान,
बस बन
जाने दो हमारी
सरकार|
आदमी: सब अलग हैं इसी बात का तो गम हैं,
कोई ना
समझे इस बात
को की एकता
में ही दम
हैं,
उँचाईया
तो बहुत दूर
हैं, देश का
आम आदमी मजबूर
हैं,
बता
दे मुझे ओ
देश के नेता,
इसमे मेरा क्या
कसूर हैं?
राजनेता: कसूरवार कोई नही, ये पड़ोसी मुल्क की साजिश हैं,
जलते
हैं सब हमसे,
ये वक़्त की
फरमाइश हैं|
आदमी: महँगाई से देश जल रहा हैं,
सफलता
का सूरज, इसीलिए
ढल रहा हैं,
अरे
यार तू छोड़
इन सबको, कर
इन बातों का
ध्यान,
कौन
रहा कितना पीछे
इसपर क्यों
हैं तेरा ध्यान,
तेरी स्पर्धा
खुद से हैं,
तू स्थापित कर
नयी प्रतिमान|
अपने विगत
प्रतिमानो के प्रति
स्पर्धा जो मन
में जागे,
बढ़ उठते
हैं नये कदम
अपने ही कदमो
के आगे|
राजनेता: विगत प्रतिमानो से ही चल रहा हैं ये देश,
पुराने
आदर्श ही हैं
हमारे नरेश,
देश
की हालत के
तुम भी ज़िम्मेदार
हो,
ये
तुम्हारा भी देश
हैं, फिर तुम
क्यों ना तैयार
हो|
आदमी: बाग के बाग को बीमार बना देती हैं,
भूखे
पेटो को राष्ट्रभक्ति
सिखाने वालों,
भूख
इंसान को गद्दार
बना देती हैं|
आरोप
प्रत्यारोप नही हैं
हल,
हाथ
जो थाम ले
हो जाएंगे सफल|
चमन को सीचने में पत्तियाँ कुछ झढ़ गयी होंगी,
चमन को सीचने में पत्तियाँ कुछ झढ़ गयी होंगी,
यही इल्ज़ाम
हम पर लग
रहा हैं वतन
की बेवफ़ाई का,
चमन को
रौंद डाला हैं
जिन्होने अपने कदमो
से,
वो अब
बात करते हैं
वतन की रहनूमाई
का|
Thought-provoking. :)
ReplyDelete