Wednesday, April 3, 2013

कीमती वक़्त (दो EEE विभाग के छात्रो की वार्तालाप)



रमेश : मैं हूँ रमेश और ये हें सुरेश|

सुरेश: कहने को तो हम NIT Trichy  के छात्र हैं,
            मगर सब कहते हैं की हम इंजिनियर नही,
             सिर्फ़ हँसी के पात्र हैं|

रमेश: EEE विभाग में प्रवेश लिया था 4 वर्ष पहले हमने,
           देखे ही नही पूरे भी किए बहुत से सपने|

सुरेश: खैर छोडो ये विभाग की बातें,
           पहले सुनो हमारी हास्य भरी दास्तानें|

रमेश: प्रथम वर्ष में हमे आविन बड़ा भाया,
          मात्र १० रुपये में हमने मिल्कशेक बहुत मचकाया|

सुरेश
: प्रथम वर्ष से याद आयीं आई-लब की रातें,
            जहाँ बहुत घंटे बिताए थे,
            फ़ेसबुक से लेकर ट्विटर तक
            सब के अकाउंट वही तो बनाए थे|

रमेश
: फ़ेसबुक का नाम ना लो जनाब,
          सुनकर हो जाता हैं मन बड़ा खराब|

सुरेश
: क्यो भाई, क्या हुआ?
          क्या तुम्हारा दिल भी वहाँ किसी पर फ़ना हुआ?


रमेश: कहानी कुछ ऐसी ही हैं भाई,
           सोचा था उस हरे सूट वाली को बनाएगे लुगाई,
           पर दाँव उल्टा पड़ा और हो गयी उसके मुस्टंडे भाई से पिटाई|


सुरेश: कहानी विस्तार से सूनाओ बालक,
          और अगली बार से पिटना नही,
          आज से खाना शुरू करो अंडे और पालक|

रमेश
तुम क्या समझोगे, तुमने कौन सी दर्द भरी रातें बिताई हैं,
           तुम्हारे स्टेटस पर तो हमेशा छप्पर फाड़ कर comment और like आई है|

सुरेश
: चलो जाने दो फ़ेसबुक को तो भाई,
          ये बताओ हरे सूट वाली के बाद,
          कभी और कोई पसंद आई?

रमेश
: पटाने की फ़ुर्सत नही मिली, पसंद तो बहुत आई,
           छोड़ेंगे नही उस नास-पीटे सी-आर को जिसने इतनी क्लास लगाई|

सुरेश
: कुछ भी कहो, उस सी-आर का नाम ना लो यार,
           दूसरे वर्ष में जिस पर दिल आया थावो करती थी उससे प्यार|

रमेश
: हाँ भाई, क्न्याओ की कमी हैं यार,
           स्थिति ऐसी जैसे, एक अनार सौ बीमार|

सुरेश
: अरे तुम्हे क्या किसी ने लाइब्ररी का हाल सुनाया है,
           हमने भी वहाँ गुटरगु करते जोड़ो को बहुत सताया हैं|

रमेश
: गुटरगु से याद आएकेम्पस के कुत्ते और गाय,
         कभी हम उन्हे और कभी वो हमे दौड़ाए|

सुरेश
: दौड़ाने से याद आया, हमारे जूनियर्स का प्यार,
          याद हैं तुम्हे जब चढ़ा था तुम्हे भी रेगिंग लेने का बुखार|

रमेश
: अरे हाँ! जूनियर्स को बहुत चिकनी चमेली पे नचाया था,
           ९० से लेकर १८० तक सभी कोनो पे झुकाया था|

सुरेश: चिकनी चमेली से याद आया वो प्रोफेसर जो लड़कियों जैसे चलता था,
          जब वो अदायों से बातें करता था, उसके मुड़ते ही, पूरा क्लास उसपे हँसता था|

रमेश
: नाम ना ले उस धूर्त्ती का, उसने बहुत वॉट लगाई है,
          जिस लेब मैं जहाँ 'S' ग्रेड मिलना था, वहाँ ससुरा 'E' ग्रेड आई है|

सुरेश
: E ग्रेड से याद आया, campus का दवाखाना,
      भाई पेट दर्द हो या हो आँख फड़फड़ाई,
      इतना जान लो, मिलेगी, एक ही सर दर्द की दवाई|

रमेश
: चल मेरे भाई, पेट में चूहे कूद रहे,
          Mess पास ही हैं, क्यो ना वही चले|

सुरेश
Mess हम ना जायेंगे, सेहत की फ़िक्र हैं हमे,
           ना जाने राजमे की दाल में, कितनी ही बार झींगूर  पड़े मिले|

रमेश
: चल छोड़ फिर हम FEST की स्टाल पर चलते हैं,
           दुगने पैसे देकर सस्ती चना चाट आते हैं|

सुरेश
: चलते हैं अब दर्शको की इज़ाज़त लेकर,
           शुभकामनाओ के साथ ये संदेश देकर,
           रुक जाना नही कही हार के,
           हर मुश्किल से लड़ना सीना तान के|

1 comment:

  1. Very informative, keep posting such good articles, it really helps to know about things.

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